आजकल use n throw का ज़माना है. किसी भी चीज़ को काम में लिया और जब काम खत्म हो गया तो फेंक दिया!! ज़रूरत ही नही रही किसी भी चीज़ को संभाल कर रखने की! आजकल का यही दौर है, बस !! फिर चाहे उस वस्तु का कोई भी मोल क्यों ना हो... अब इसमें किसी भी चीज़ को आप शामिल कर सकते है, जैसे की cars, laptops, mobile, t.v.... electronic item तो आप चाहे जितने शामिल कर लीजिये लिस्ट में जुड़ते चले जाएँगे.
किसी ज़माने में लोग पत्तल-दोने use n throw के लिए लाया करते थे, जब किसी के घर में कोई शादी कार्यक्रम हुआ करते थे! की इतने सब गांववालों का खाना होगा तो पत्तल-दोने काम थोडा हल्का कर देंगे. फिर सुनाई पड़ा की आजकल पेन भी use n throw आने लगे है. स्याही भरने का, ख़ाली होने का झंझट ही खत्म. सिर्फ एक बार पेन खरीद लीजियेगा और जब तक चल जाये, चलाईये....जिस दिन चलना बंद हो जाये, उस दिन नया खरीद कर पुराने को किसी dustbin में डाल आइयेगा! अभी कुछ समय से सुनाई देने लगा है कि अब से कपड़े भी use n throw आने लगे है.श्रीमती जी बहुत खुश है यह खबर सुनकर. क्या बात है! कपड़ों को धोने सुखाने के झंझटों से जो मुक्ति मिल गयी है....
पर कहीं ना कहीं यह आदत हमे सुख पहुँचाने के बजाये दुःख पहुंचा रही है, क्यूंकि इसकी वजह से हम चीजों के वास्तविक मूल्यों से अनभिज्ञ हो जाते है.....जो की भविष्य में हमे इन्ही चीजों के प्रति लापरवाह बना देती है. और कमाल की बात तो यह है कि कब ये आदत, सिर्फ एक आदत ना रहकर हमारे चरित्र में शामिल हो जाती है, किसी को खबर भी नही लगती.
जिस दिन यह आदत चरित्र बन जाती है, उस दिन से हम इंसानों को भी वस्तुओं की श्रेणी में रखने लगते है.....और ऐसा ही बर्ताव भी करते है, कि जिस दिन काम ख़त्म हो गया तो फेंक दिया!! हम भावनाओं के प्रति लापरवाह हो जाते है, और ख्याल ही नही रखते कि जिसके साथ हम निर्जीव वस्तु जैसा व्यवहार कर रहे है, वो दरअसल एक जीता-जागता इन्सान है!! उसकी भी अपनी कुछ भावनाएं है, जिन्हें हम जाने-अनजाने ठेस पंहुचा रहे है.
हम लेकिन भागे जा रहे है बिना किसी का ख्याल करे......अपने ही अंधेपन में!!