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Saturday 10 September 2011

काम ख़त्म हो गया तो फेंक दिया !!

 आजकल use n throw का ज़माना है. किसी भी चीज़ को काम में लिया और जब काम खत्म हो गया तो फेंक दिया!! ज़रूरत ही नही रही किसी भी चीज़ को संभाल कर रखने की! आजकल का यही दौर है, बस !! फिर चाहे उस वस्तु का कोई भी मोल क्यों ना हो... अब इसमें किसी भी चीज़ को आप शामिल कर सकते है, जैसे की cars, laptops, mobile, t.v.... electronic item तो आप चाहे जितने शामिल कर लीजिये लिस्ट में जुड़ते चले जाएँगे.

 किसी ज़माने में लोग पत्तल-दोने use n throw के लिए  लाया करते थे, जब किसी के घर में कोई शादी कार्यक्रम हुआ करते थे! की इतने सब गांववालों का खाना होगा तो पत्तल-दोने काम थोडा हल्का कर देंगे. फिर सुनाई पड़ा की आजकल पेन भी use n throw आने लगे है. स्याही भरने का, ख़ाली होने का झंझट ही खत्म. सिर्फ एक बार पेन खरीद लीजियेगा और जब तक चल जाये, चलाईये....जिस दिन चलना बंद हो जाये, उस दिन नया खरीद कर पुराने को किसी dustbin में डाल आइयेगा! अभी कुछ समय से सुनाई देने लगा है कि अब से कपड़े भी use n throw आने लगे है.श्रीमती जी बहुत खुश है यह खबर सुनकर. क्या बात है! कपड़ों को धोने सुखाने के झंझटों से जो मुक्ति मिल गयी है.... 


पर कहीं ना कहीं यह आदत हमे सुख पहुँचाने के बजाये दुःख पहुंचा रही है, क्यूंकि इसकी वजह से हम चीजों के वास्तविक मूल्यों से अनभिज्ञ हो जाते है.....जो की भविष्य में हमे इन्ही चीजों के प्रति लापरवाह बना देती है. और कमाल की बात तो यह है कि कब ये आदत, सिर्फ एक आदत ना रहकर हमारे चरित्र में शामिल हो जाती है, किसी को खबर भी नही लगती. 

जिस दिन यह आदत चरित्र बन जाती है, उस दिन से हम इंसानों  को भी वस्तुओं की श्रेणी में रखने लगते है.....और ऐसा ही बर्ताव भी करते है, कि जिस दिन काम ख़त्म हो गया तो फेंक दिया!! हम भावनाओं के प्रति  लापरवाह हो जाते है, और ख्याल ही नही रखते कि जिसके साथ हम निर्जीव वस्तु जैसा व्यवहार कर रहे है, वो दरअसल एक जीता-जागता इन्सान है!! उसकी भी अपनी कुछ भावनाएं है, जिन्हें हम जाने-अनजाने ठेस पंहुचा रहे है.

हम लेकिन भागे जा रहे है बिना किसी का ख्याल करे......अपने ही अंधेपन में!!

Friday 2 September 2011

यूँ ही कोई मिल गया था !!

अचानक कोई दिल को भा जाये!! कैसा लगता है?? मुझको भी पहले कभी समझ नही आया था, कि अचानक कोई दिल को कैसे भा सकता है? ओर कभी सोचा भी नही था, कि किसी दिन अचानक, यूँ ही, कोई मेरे दिल को भी भा जाये !! ऐसी कोई ख्वाहिश दिल में कभी जगी नही. पर हुआ साहब! एक दिन अचानक यूँ ही ये भी हुआ! कैसे हुआ? 

रोज़ कि तरह, मै कॉलेज से घर लौट रही थी. अपने ही बहुत से खयालों में खोई हुई थी, और इस कदर खोई थी कि सड़क पर क्या हो रहा है इसकी कोई खबर नही थी. सड़क शायद लगभग ख़ाली ही थी, और अगर नही भी थी तब भी मुझे तो ख़ाली ही दिख रही थी. ऐसा कुछ खास हुआ नही था, जिसकी वजह से मै किन्ही ख़यालों में खोई होऊ. ये मेरी आदत है बस कि सड़क पर अपने ख़यालों में ही चलती हूँ अधिकतर! फर्क इतना ही था कि रोज़ सड़क पर चलने वाले हर शख्स पर भी ध्यान  रहता है जो कि आज नही था ! क्यों नही था, इसका जवाब मेरे पास भी नही है.

  
तो बस सड़क ख़ाली थी मेरे लिए, चाहे जैसे भी थी! सड़क कुछ घुमाव लिए हुए थी, बायीं ओर. और जैसे ही मै उस घुमाव तक पहुची, अचानक से जो सड़क मेरे लिए ख़ाली थी वो अब भर गयी थी! मेरी ही तरफ मुझसे कुछ दूरी पर मुझे अब एक सिटी बस नज़र आ रही थी, बस स्टॉप पर रुकी थी और सवारियां उसमे बैठ रही थी. अगर आगे चलकर मेने गाड़ी नही मोड़ी तो जरुर मुझको उस सिटी बस में घुस जाना था! 

सामने की तरफ से, यानि की रोंग साइड पर भी अब लोग नज़र आ रहे थे. और जब नज़र सामने से आ रहे लोगों पर पड़ी, तो वही नज़र आ गया, अचानक से, यूँ ही कोई, जो दिल को भा गया!! बस नज़र से नज़र मिली और तब तक नहीं हटी जब तक की दोनों की गाड़ियाँ दूर ना ले गयीं. ऐसा लग रहा था जैसे सड़क पर अचानक से फूलों की बरसात होने लग गयी हो! सारी दुनिया जैसे स्लो मोशन में चली गयी हो! और एक-एक जाता हुआ लम्हा जैसे हकीकत न होकर सपना हो! मै सब कुछ भूलकर बस उसको देखती ही रह गयी!! " ओह!! ये कितना अच्छा था! " बस मेरा दिल इतना ही बोल पाया था उसके ख़यालों में! 

जब तक उसके ख्याल से बाहर आई तब देखा  " सौम्या आगे बस है!"